(सूरदास का जीवन परिचय) कक्षा 10-सूरदास (पद)
कवि-एक संक्षिप्त परिचय
दोस्तों आज इस पोस्ट में हम अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास के जीवन परिचय के बारे में जानेंगे सूरदास का
जन्म कहां पर हुआ था उनके माता-पिता का नाम क्या था तथा उनकी रचनाएं कौन-कौन सी हैं
और उनके दोहे कौन-कौन से हैं आज हम इन सभी सवालों का जवाब इस पोस्ट में देंगे तो पोस्ट को पूरा ध्यान से पढ़िएगा
------------------------स्वागत है आप सभी का-----------------
अगर आप भी कक्षा 10 में है और बोर्ड का एग्जाम देने जाएंगे तो वहां पर कवियों का जीवन परिचय तथा उनकी रचनाएं अवश्य पूछी जाएंगी इसलिए
अगर आप पहले से ही तैयार किए रहेंगे तो एग्जाम में आप इसे अच्छी तरह से लिख सकते हैं।
तो सूरदास के बारे में जानने से पहले मेरा भी नाम जान लीजिएमेरा नाम है राज रत्न और मै U.P के एक प्यारे से जौनपुर जिले के छोटे से गांव गौरा से हू ।
और मै आप लोगो के लिए पढ़ाई से सम्बंधित Article लिखता हूं।
चलिए जानते हैं अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास का जीवन परिचय
सूरदास (जीवन परिचय)
अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास का जन्म वैशाख सुदी पंचमी, सन 1478 ई० में आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क के पास रुनकता नामक गांव में हुआ था।
कुछ विद्वान इनका जन्म दिल्ली के निकट सीही गांव में मानते हैं। सूरदास जन्मांध थे या नहीं, इस संबंध में अनेक मत हैं।
यह बचपन से ही विरक्त हो गए थे और गऊघाट में रहकर विनय के पद गाया करते थे। एक बार वल्लभाचार्य गऊघाट पर रुके। सूरदास ने उन्हें स्वरचित एक पद गाकर सुनाया।
वल्लभाचार्य ने इनको कृष्ण की लीला का गान करने का सुझाव दिया। यह वल्लभाचार्य के शिष्य बन गए और कृष्ण की लीला का गान करने लगे। इनके पिता का नाम रामदास सारस्वत था।
वल्लभाचार्य ने इनको गोवर्धन पर बने श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन करने के लिए रख दिया। वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने अष्टछाप के नाम से सूरदास सहित आठ कृष्ण भक्त कवियों का संगठन किया।
इनकी मृत्यु गोवर्धन के पास पारसोली ग्राम में सन 1583 के लगभग हुई।
सूरदास के पदों का संकलन ,सूरसागर, है। सूर सरावली तथा साहित्य लहरी इन की अन्य रचनाएं हैं। यह प्रसिद्ध है कि सूरसागर में सवा लाख पद हैं। पर अभी तक केवल 10000 पद ही प्राप्त हुए हैं।
सूट सरावली, कथावस्तु ,भाव ,भाषा, शैली ,और रचना की दृष्टि से नि:संदेह सूरदास की प्रामणिक रचना है ।
इसमें 1107 छंद है। साहित्य लहरी सूरदास के 118 दृष्टिकोण पदों का संग्रह है। सूरदास की रचनाओं के संबंध में इस प्रकार कहा जा सकता है।
" साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर की सरावली।
श्री कृष्ण जी की बाल छवि पर लेखनी अनुपम चली। "
सूरदास ने कृष्ण की बाल लीलाओं का बड़ा ही विषद तथा मनोरम वर्णन किया है। बाल जीवन का कोई पक्ष ऐसा नहीं, है जिस पर इस कवि की दृष्टि ना पड़ी हो।
इसलिए इनका बाल वर्णन विश्व साहित्य की अमर निधि बन गया है। गोपियों के प्रेम और विरह का वर्णन भी बहुत आकर्षक है। संयोग और वियोग दोनों का मर्मस्पर्शी चित्रण सूरदास ने किया है।
सूरसागर का एक प्रसंग भ्रमरगीत कहलाता है। इस प्रसंग में गोपियों के प्रेमावेश ने ज्ञानी उद्धव को भी प्रेमी एवं भक्त बना दिया है। सूर के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है इनकी तन्मयता ।
यह जिस प्रसंग का वर्णन करते हैं उनमें आत्मविभोर कर देते हैं इनके विरह वर्णन में गोपियों के साथ ब्रज की प्रकृति भी विषाद मग्न दिखाई देती है ।
सूर की भक्ति मुख्यत: सखा भाव की है । उसने विनय, दांपत्य और माधुरी भाव का भी मिश्रण है। सूरदास ने ब्रज के लीला पुरुषोत्तम कृष्ण की लीलाओं का ही विशद वर्णन किया है।
सूरदास का संपूर्ण काव्य संगीत की राग रागिनी ओं में बंधा हुआ पद शैली का गीतिकाव्य है। उसमें भाव साम्य पर आधारित उपमाओं, उत्प्रेक्षाओ और रूपको की छटा देखने को मिलती है। इनकी कविता ब्रज भाषा में है । माधुर्य की प्रधानता के कारण इनकी भाषा बड़ी प्रभाव उत्पादक हो गई है।
व्यंग्य, वक्रता और वाग्विदग्धता सूर की भाषा की प्रमुख विशेषताएं हैं ।सूर ने मुक्तक काव्य शैली को अपनाया है। कथा वर्णन में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
समग्रत: इनकी शैली सरस एवं प्रभावशाली है। सूर का प्रत्येक पद सरसता, मधुरता, कोमलता और प्रेम के पवित्र भावों से पूर्ण है ।
सूरदास जी ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से हिंदी साहित्य को जो गरिमा प्रदान की है, वह अद्वितीय अतुलनीय हाल है। सूरदास जी हिंदी साहित्यकाश के देदीप्यमान सूर्य है।
जिनके समक्ष कवि साधारण नक्षत्र से आभासी होते है। इसलिए कहा गया है-
सूर-सूर तुलसी ससि, उडुगन। केशवदास।अब के कवि खधोत सम, जह तह करत प्रकाश।
इनकी प्रमुख रचनाएं हैं-सूरसागर, साहित्य लहरी ,सुर सरावली
Good information
ReplyDeleteThanks for comment
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